डॉ. भीमराव अंबेडकर की मृत्यु: एक युग का अंत:
डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर, जिन्हें बाबा साहेब अंबेडकर के नाम से जाना जाता है, भारत के संविधान निर्माता, समाज सुधारक, और दलितों के मसीहा थे। उनका जीवन संघर्षों, ज्ञान और सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक रहा है। 6 दिसंबर 1956 को जब बाबा साहेब का निधन हुआ, तो न केवल भारत ने अपना एक महान नेता खोया, बल्कि एक युग का अंत भी हो गया। इस लेख में हम उनके निधन के कारण, उनकी अंतिम यात्रा और उनकी मृत्यु के बाद देश में हुए प्रभाव को विस्तार से जानेंगे।

बाबा साहेब अंबेडकर की मृत्यु का कारण:
डॉ. भीमराव अंबेडकर लंबे समय से मधुमेह (डायबिटीज) और उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) जैसी बीमारियों से जूझ रहे थे। इसके साथ ही उन्हें नींद की कमी, अत्यधिक काम का तनाव और लगातार खराब स्वास्थ्य की शिकायतें थीं। उनका स्वास्थ्य 1950 के दशक में और अधिक गिरने लगा था। उन्होंने भारत का संविधान बनाने में अपनी सारी ऊर्जा लगा दी थी और उसके बाद भी वह दलितों के अधिकारों और बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में जुटे रहे।
बाबा साहेब का निधन 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली स्थित उनके आवास पर हुआ। वह केवल 65 वर्ष के थे।
अंतिम संस्कार और बौद्ध परंपरा:
डॉ. अंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी। इसके कुछ ही सप्ताह बाद उनका निधन हो गया। उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार, उनका अंतिम संस्कार बौद्ध रीति-रिवाजों से किया गया। 7 दिसंबर 1956 को मुंबई के दादर स्थित चौपाटी समुद्र तट के पास उनके शव का बौद्ध विधि से अंतिम संस्कार किया गया।
इस ऐतिहासिक घटना को “धम्मचक्र प्रवर्तन दिन” का नाम दिया गया, और इसमें लाखों की संख्या में उनके अनुयायी, समर्थक और आम लोग शामिल हुए।
उनकी मृत्यु के बाद देश में माहौल:
बाबा साहेब अंबेडकर की मृत्यु की खबर से पूरा देश शोक में डूब गया। खासकर दलित समाज के लिए यह अपूरणीय क्षति थी। उनके अनुयायियों ने उन्हें “मुक्ति दाता” और “दलितों के मसीहा” के रूप में याद किया।
उनकी मृत्यु के बाद अनेक स्थानों पर श्रद्धांजलि सभाएं आयोजित की गईं। भारत सरकार ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी और 1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया।
भीमराव अंबेडकर की विरासत:
बाबा साहेब की मृत्यु भले ही 1956 में हो गई हो, लेकिन उनकी विचारधारा आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरणा देती है। उन्होंने भारत के संविधान में समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के सिद्धांतों को जोड़ा। उन्होंने दलितों, महिलाओं और वंचित वर्गों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
उनकी मृत्यु के बाद लाखों अनुयायियों ने बौद्ध धर्म को अपनाया, जिसे “नवबौद्ध आंदोलन” कहा जाता है। बाबा साहेब ने जो बीज बोया था, वह आज एक विशाल आंदोलन बन चुका है।
डॉ. अंबेडकर की स्मृति में स्मारक और स्थान:
उनकी स्मृति में अनेक स्थानों को संरक्षित किया गया है:
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दीक्षा भूमि (नागपुर) – जहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार किया।
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चैत्यभूमि (मुंबई) – उनका समाधि स्थल, जहाँ हर वर्ष लाखों लोग श्रद्धांजलि देने आते हैं।
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भीम जनम भूमि (महू, मध्य प्रदेश) – जहाँ उनका जन्म हुआ था।
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अंबेडकर भवन और संग्रहालय (दिल्ली एवं मुंबई) – जहाँ उनके जीवन से जुड़ी वस्तुएं और दस्तावेज रखे गए हैं।
निष्कर्ष:
डॉ. भीमराव अंबेडकर की मृत्यु केवल एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं थी, बल्कि एक क्रांति के जनक का अंत था। उनका जीवन संघर्ष और उनके विचार आज भी समाज में प्रेरणा का स्रोत हैं। उनके सपनों का भारत, जिसमें सभी को बराबरी का अधिकार मिले, अभी भी हमारी यात्रा का लक्ष्य है।
बाबा साहेब भले ही शारीरिक रूप से इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी विचारधारा, योगदान और स्मृति हर वर्ष 6 दिसंबर को, और हर दिन, लाखों दिलों में जीवित रहती है।